The Heart of Change: Issues on Variation in Hindi / हिंदी तेरे रूप अनेक बदलाव के बीच में
25 Aug 2022
The Impact of Other Indian Languages on Dakhini / दखनी पर अन्य भारतीय भाषाओं का प्रभाव
Abstract Dakkhini, an Indo-Aryan language, has been in constant contact with Telugu and several other Dravidian languages for more than four centuries. As a result, it has acquired a number of syntactic features that are not found in Hindi-Urdu but found in any one of the Dravidian languages that it has been in contact with. This syntactic change is generally labelled as convergence which results in a Linguistic area. The study shows that Dakhini and Telugu are closer to each other than Dakhini and Urdu or Telugu and Urdu. The data have been verified using some YouTube programs in current Dakhini.
Keywords convergence, linguistic area, contact language, code switching, agreement, honorifics.
सारांश लगभग चार शताब्दियों से भारतीय आर्य भाषा दखनी द्रविड़ की अनेक भाषाओं के विशेष रूप से तेलुगु के संपर्क में रही है। परिणामस्वरूप दखिनी की वाक्य संरचना में ऐसी कई विशेषताएं हैं जो कि हिंदी या उर्दू में नहीं पाई जातीं पर द्रविड़ भाषा परिवार की इस खास भाषा, तेलुगु में पाई जाती हैं। इस तरह के वाक्य परिवर्तन भाषाई अभिसरण के नाम से जाने जाते हैं जो किसी भी भाषाई-क्षेत्र की उपज हो सकते हैं. यह लेख इसी प्रकार की संरचनाओं के बल पर इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि वाक्य संरचना की दृष्टि से दखनी भाषा तेलुगु के ज्यादा पास हैं बजाय हिंदी या उर्दू के. इस आलेख का आधार हैदराबाद के वे स्थानीय निम्न और मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार हैं जहाँ दखनी बोली जाती है। आजकल के दखनी संदर्भों की पुष्टि के लिए यू-ट्यूब से वीडियो सामग्री की सहायता भी ली गई है।
मुख्य शब्द – भाषाई अभिसरण, भाषाई क्षेत्र, संपर्क भाषा, कोड स्थान्तरण, अन्विति, सम्मानसूचक।
१ परिचय
हैदराबाद की भाषाई पृष्ठभूमि बहुत रोचक है। यहीं कुछ सदियों पहले दखनी हिंदी का आविर्भाव हुआ। उर्दू के प्रचलन के साथ-साथ उसका रूप बदलता रहा। पुरानी और वर्तमान दखनी में बहुत अंतर है। आधुनिक बोलचाल की भाषा मानक हिंदी-उर्दू के अधिक निकट है। निज़ाम के शासनकाल में उर्दू यहाँ की राजभाषा थी और शिक्षा के माध्यम की भी भाषा थी। आंध्र प्रदेश बनने के बाद भी पूरे तेलंगाना में दखनी बोलचाल तथा संपर्क का माध्यम बनी रही। इस कारण दखनी में एक ओर उर्दू से प्रभावित भाषिक विशेषताएँ हैं तो दूसरी और क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
दखनी हैदराबाद में पली और निज़ाम राज्य के पूरे इलाके में अर्से तक संपर्क का माध्यम बनी रही। हैदराबाद अर्से तक आंध्र प्रदेश की राजधानी रहा, पर अब नव निर्मित तेलंगाना प्रदेश की भी राजधानी है जिसकी आज राजभाषा तेलुगु और उर्दू है। यहाँ की जनता महानगरीय है, जिसमे तेलुगु बोलने वालों की बहुतायत है। इस कारण दखनी में द्रविड परिवार की कई भाषिक विशेषताएँ भी हैं। तेलंगाना के पश्चिमी जिलों में तथा हैदराबाद शहर में भाषा के आधार पर प्रदेशों के पुनःसंगठन से पहले अधिक संख्या में मराठी भाषी थे। तेलुगु और मराठी पड़ोसी भाषाएँ होने के नाते उनमें कुछ सामान्य विशेषताएँ विकसित हुई जिससे दखनी हिंदी में ये विशेषताएँ भी दिखलायी पड़ती हैं। इस तरह ये विशेषताएँ किसी ख़ास भाषा-समुदाय की विशेषताएँ नहीं, बल्कि शहर की सामान्य बोलचाल की भाषा में न्यूनाधिक रूप में लोगों के भाषा-कोश में विद्यमान है। यहाँ के स्थानीय हिंदी भाषियों में भी ये विशेषताएँ कमो-बेश दिखाई देती हैं। शिक्षा तथा मानक हिंदी के प्रचार के कारण सभी लोगों में सभी विशेषताएँ नहीं दिखायी पड़ती। सामाजिक संदर्भों में पढ़े-लिखे लोगों में कोड-अंतरण (Code-Switching) देखा जा सकता है, जहाँ एक व्यक्ति औपचारिक क्षेत्रों, वर्गीय संपर्कों में मानक हिंदी का प्रयोग करे और अन्य स्थानीय व्यक्तियों के साथ दखनी का।
२ दखनी हिंदी के प्रकार
भाषिक पृष्ठभूमि के आधार पर संपर्क भाषा के रूप में दखनी बोलने वाले व्यक्तियों के दो वर्ग हो सकते हैं –
(अ) मातृभाषा के रूप में दखनी का प्रयोग करने वाले स्थानीय हैदराबादी निवासी जो अधिकांश मुस्लिम समाज से हैं और कुछ अन्य प्रदेशों से आकर बसे हुए परिवार हैं। सामाजिकता और आर्थिक दृष्टि से भी यह उच्च वर्गीय खालिस उर्दू बोलनेवालों से भिन्न वर्ग है।
(आ) संपर्क भाषा के रूप में हिंदी भाषा का प्रयोग करने वाले द्विभाषी समुदाय के लोग, जिनमे प्रमुख तेलुगु और मराठी भाषी हैं। इनकी भाषा को मैं दखनी का एक रूप हैदराबादी हिंदी मानती हूँ जो दखनी से कुछ अर्थों में भिन्न है -पर है दखनी की ही एक शैली (शर्मा 1984)।
दक्षिण के विभिन्न क्षेत्रों में वहाँ की स्थानीय भाषाओं के प्रभाव से दखनी के हैदराबादी ,बैंगलोरी, औरंगाबादी रूप भी मिलते हैं।मातृभाषा भाषी वर्ग में स्थानीय भाषा से मानक हिंदी तक का एक क्रम (spectrum) दिखायी पड़ता है, जबकि द्विभाषी समुदाय में स्थानीय भाषागत विशेषताएँ गहराई तक हैं।
सुब्बाराव और अरोड़ा (1989) ने अपने एक लेख “Some Aspects of the Syntax of Dakkhini” में तेलुगु वाक्यविन्यास का दखनी पर प्रभाव और उसके कारण दखनी के उर्दू से हटकर तेलुगु वाक्य-विन्यास को अपनाने के पक्ष में कई तर्क दिए हैं। उन्होंने उक्त लेख में दखनी के रूप विन्यास और वाक्य-विन्यासात्मक (morphological and syntactic) अभिसरण की प्रक्रिया को तेलुगु और उर्दू के संदर्भ में विवेचित किया है।
इस आलेख में दखनी, मानक हिंदी और तेलुगु के संदर्भ में कुछ प्रमुख बिंदुओं पर विचार किया जाएगा जो दखनी के उक्त अभिसरण की पुष्टि करते हैं।
वाक्य रचना संबंधी विशेषताएँ
अकर्मक वाक्य – दखनी में “ ने ” का प्रयोग नहीं मिलता। क्रिया अकर्मक वाक्य की तरह कर्ता के साथ अन्वित होती है। बाबूराम सक्सेना (1952:53) जी के अनुसार वैसे तो ‘ने‘ दखनी में नहीं प्रयुक्त होता पर जहाँ नहीं होना चाहिए कभी वहाँ होता है।
| (1) | उनों बी बात को खोले है | |
(2) | खुदा के दोस्ताँ ने बोले हैं अन्य उदाहरण भी देखिए – | ||
| दखनी | हिंदी | |
(3) | तुम फिल्म देखे क्या | (क्या) तुमने फिल्म देखी? | |
(4) | मैं हत्या नई करा। | मैंने हत्या नहीं की | |
(5) | पुलिसवाला मारा | पुलिसवाले ने मारा। |
व्यवहार में प्रयुक्त न होने के कारण ‘ने’ का प्रयोग अर्जित व्यवहार के कारण या औपचारिक शिक्षण से ही संभव हो पाता है।
कर्ता +को रचना
दखनी. में सर्वनाम + ‘को, के’ तिर्यक रूप मुझे, तुम्हें नहीं मिलते। तेलुगु की तरह सर्वनाम + को = ना + कु ,मी + कु ,आयन + कु = मेरे + कु ,तेरे + कु, उन / उना + कु का प्रयोग मिलता है
| (6.1) | तुमारे कु क्या होना? ते. मीकू एम कावाले? | हिं. तुम्हें क्या चाहिए |
(6.2) | मेरे कु एक साड़ी होना। ते. (ना कु ओक) चीर कावाले | हिं. (मुझे एक) साड़ी चाहिए |
सुब्बाराव ने इसे इस तरह वर्गीकृत किया है- Degenitivization (loss of the genitive) and towards Dativization (replacing a genitive of Hindi-Urdu by a dative case marker. निम्नलिखित संबंध सूचक वाक्य Subbarao & Arora (1989:111) के शोध पत्र से उधृत हैं।
Possession / संबंध कारक
a) | Kinship | ||||
Hindi | |||||
(7) | sītā | ke | cār | bacce | haĩ |
Sita | gen | four | children | are | |
‘Sita has four children.’ |
| Telugu (Dravidian) | ||||
(8) | sītā | ki | naluguru | pillalu (unnaaru) |
b) | Inalienable Possession | ||||||
Hindi | |||||||
(9) | kutt.e | ke | cār | pā͂v | hote | haĩ | |
dog.obl | gen.pl | four | legs | existing | are | ||
‘A dog has four legs.’ |
| Telugu | |||||
(10) | kukka | ki | nālugu | kāḷḷu | unṭāyi | |
dog.obl | dat | four | legs | are | ||
‘A dog has four legs.’ |
| Dakhini | |||||
(11) | kutte | ku | cār | pā͂vā͂ | raite | |
dog.obl | gen.pl | four | legs | are |
c) | Concrete Possession | ||||||
Hindi-Urdu | |||||||
(12) | us | ke | pās | bahut | paisā | hai | |
He | obl | gen | near | much | money | is | |
‘He has a lot of money.’ |
| Telugu | |||||
(13) | āme | ki | cālā | ḍabbu | undi | |
He | dat | much | money | is | ||
‘He has a lot of money.’ |
| Dakhini | |||||
(14) | us | ku | bhot | paisā | ai | |
He.obl | dat | much | money | is | ||
‘He has a lot of money.’ |
Agreement in gender and number / अन्विति – लिंग और वचन
दखनी में बहुवचन शब्द अंत में-याँ / -आँ लगाकर बनते हैं जैसे –
स्त्री. बात > बाताँ, पु. काम > कामाँ, बहू > बहुआँ, सूअर > सूअराँ, रात > राताँ, घर > घराँ,
बच्ची > बच्चियाँ बैल > बैलाँ
अंग्रेज़ी शब्द के बहुवचन रूप – मार्कां, क्वेश्चनाँ, नम्बराँ, पैम्पराँ आदि।
Emphatic particles / बलाघात – ही, भी, तो
ही, भी का प्रयोग हिंदी में पूरा शब्द जोड़कर किया जाता है पर दखनी में ई / ईं सर्वनाम में जुड़ जाता है – हमीं / तुमीं
हिंदी | दखनी |
हम + ही,तुम + ही,आज + ही कल + ही | हमीं, तुमीं, आजी, कली |
बाबूराम सक्सेना (1952:53) ने ‘च’ के प्रयोग के कुछ उदाहरण दिए हैं –
भौतीच < बहुत + च हिंदी ‘बहुत ही’; ऐसेच < ऐसे + च हिंदी ‘ऐसे ही’;
योंच < यों + च हिंदी ‘यूँ ही’; देखतेच < देखते + च हिंदी ‘देखते ही’ ।
हैदराबादी दखिनी
| (15) | कल से नई आती मैं पैलैच बोल दी |
(16) | झाडू पोंचा नई करती मैं पैलेच बोल दी | |
(17) | मालूम इच है न सास कु डायबेटीज़ है जल्दी खाना होना मेरकु हिंदी ‘मालूम ही है न सास को डायबटीज़ है मुझे जल्दी खाना चाहिए’ हिंदी ‘भी’ > बी / ब्बी – कब + ही > कब्बी, अब + ही > अब्बी |
| | दखनी | हिंदी |
(18) | इत्ते दिनाँ में कब्बी नई फटकी (फटकना = आना) | ‘इतने दिनों में कभी भी नहीं आई।‘ | |
(19) | अब्बी सोके आई | ‘अभी सो कर आई हूँ।’ | |
(20) | किसको बी नको बोलो | ‘किसी को भी मत बताना।’ | |
(22) | उनाँ चुपके तो बी गल्ला फाड़ रैं | ‘वे लोग बेकार में चीख रहे हैं।’ | |
(23) | क्या तो बी बोल रैं | ‘पता नहीं क्या बोल रहे हैं’ |
सर्वनाम
अपना – दखनी में ‘अपना’ के स्थान पर ‘तुम्हारा’ का प्रयोग ही मिलता है ‘अपनी-अपनी’ और ‘अपने-अपने’ के प्रयोग भी देखिये।
दखिनी
| (24) | तुम सब लोगाँ तुम्हारी किताबाँ खोलो हिंदी ‘तुम सब अपनी किताबें खोलो।’ |
(25) | सारे जनाँ तम्हारी तुम्हारी किताबाँ खोल लेना | |
(26) | तुम सबों आज इच तुम्हारे-तुम्हारे घराँ कु चले जाव हिंदी ‘आप सब आज ही अपने-अपने घर चले जाएँ’ | |
(27) | मैं तुमन कु मेरा ई-मेल देताउँ हम सब – हम लोगाँ / अपुन लोगाँ (वक्ता के साथ) = us (inclusive) | |
(28) | हम लोगाँ आनै इच वाले थे हिंदी ‘हम लोग आने ही वाले थे।’ | |
(29) | अपन लोग आज इच याद करै थे न हिंदी ‘हम लोग आज ही याद कर रहे थे न।’ |
क्रिया – रहा ‘है’ का लोप
हिंदी ‘रहा + है’ = दखनी रा / रय / रै / रईं (वचन और लिंग की अन्विति)
वर्तमान काल – हिंदी की सहायक क्रिया “ है, हूँ, हैं ”
दखनी के क्रिया रूप – बोलतूँ , बोलतैं, बोलताउँ
भूत काल – सहायक क्रिया “था,थी,थे” का प्रयोग हिंदी और दखनी में भी होता है।
दखनी छिछोरे बाताँ करयथे
भविष्य काल – हिंदी के सहायक क्रिया-रूप “ होगा, होगी, होंगे”
दखनी बोलतूँ फेल हुए सो
| (30) | चार अंडे उबाल ले लेके लात्युँ हिंदी ‘चार अंडे उबाल कर ले आती हूँ।’ |
(31) | नई चला तो फेंक देंगे (रीमोट)अपना क्या जारा (जा रहा है) |
इच्छार्थक क्रिया
दखनी में ‘चाहना, चाहिए’ का प्रयोग भी नहीं मिलता। संज्ञा + चाहिए की रचना में ‘होना’ का प्रयोग होता है जो मराठी के ‘पाहिजे’ और तेलुगु के ‘कावाले / लि’ के प्रभाव से है। कहीं कहीं.’ मांगता ‘पूछना’ भी प्रयुक्त होता है
| (32) | तुम कु क्या होना हिंदी मराठी तेलुगु दखनी हिंदी | ‘तुम्हें क्या चाहिए’ ‘तुला काय पाहिजे‘ ‘नीकु एम कावालि‘ एक्स्ट्रा पूछेंगे तो ‘और अधिक / अतिरिक्त मांगेंगे तो...‘ |
‘चाहना, चाहिए’ के अन्य संदर्भों में मूल वाक्य के अर्थ के अनुसार क्रियार्थक संज्ञा वाली रचनाएँ मिलती हैं। मध्यम पुरुष के वाक्य सुझाव, अप्रत्यक्ष विधि या निषेध की तरह आते हैं, अतः कर्ता प्रत्यक्ष होता है; उत्तम पुरुष में कर्ता + को की रचना मिलती है; अन्य पुरुष में इन दोनों का संयोजन है। कुछ उदाहरण देखें-
| | दखनी | हिंदी |
(33) | तुम जाना | तुम्हें जाना चाहिए | |
(34) | तुम जाना नई | तुम्हें जाना नहीं चाहिए | |
(35) | मेरे कु एक कमीज़ होना | मुझे एक कमीज़ चाहिए |
निषेध सूचक— दखनी में ‘मत’ का प्रयोग नहीं मिलता, बल्कि ‘नईं’ ही निषेध में आता है।
दखनी हिंदी
| | दखनी | हिंदी |
(36) | तुम नको जाओ | तुम मत जाओ | |
(37) | तुम जाना नई | तुम्हें जाना नहीं चाहिए | |
(38) | बहु नको खोलो बोली | बहु ने कहा कि मत खोलो | |
(39) | मेरे कने नईं आओ। | मेरे पास मत आओ | |
(40) | मिठाई नईं खा। | मिठाई मत खा |
शब्द का क्रम काफी लचीला है। नहीं का रूप ‘नई’ वाक्य़ के अंत में ही नहीं मध्य में भी आ सकता है।
| (41) | क्या कि बोल नईं | हिंदी ‘कुछ मत कह’ |
(42) | नींद से नई उठा सकते मुझे दुनिया से उठाते कते हिंदी ‘जो नींद से उठा नहीं सकते वो कहते हैं मुझे दुनिया से उठा देंगे।’ |
“ हाँ ” और “नहीं ”
“ हौ ”, “ नको ” दखनी का विशेष प्रयोग है, जो मराठी से आया है। सामान्य रूप से किसी बच्चे को किसी कार्य के लिए संकेत से मना करने के लिए जिस तरह “ नहीं ” कहते हैं, उस तरह यहाँ “ नको ” का प्रयोग मिलता है।
| | दखनी | हिंदी |
(43) | तुम नको जाओ | ‘तुम मत जाओ’ | |
(44) | नको बोलो | ‘मत बोलो’ | |
(45) | लाल चटनी के शिगुफ़े नको करो | ‘लाल चटनी (मांगने) के नखरे मत करो’ | |
| ‘नको’ दूसरी तरफ़ ‘नहीं चाहिए’ के अर्थ में भी आता है। कुछ प्रश्नोत्तर देखें – | ||
(46) | प्रश्न— तुमकू मिठाई होना? | उत्तर— नको । | |
(47) | प्रश्न— तुम खाना खाते क्या? | उत्तर— अबी नको | |
| दखनी “क्या कि” (हिंदी ‘कुछ’) प्रायः निषेधार्थक संदर्भों में ही आता है। | ||
(48) | प्रश्न— कौन आये थे? | उत्तर— क्या कि ‘नहीं मालूम।’ | |
| हिंदी के तकिया कलाम “पता नहीं” से इसकी तुलना कर सकते हैं। | ||
(49) | वो क्या कि बोल रा । | ‘पता नहीं, वह क्या बोल रहा है।’ |
इनमें इस प्रछन्न निषेध को देख सकते हैं। इसी दृष्टि से यह “ क्या भी ” (‘ कुछ भी ’) से भिन्न है। (48) और (49) में “ क्या कि” का प्रयोग देखिये।
| (50) | क्या भी नईं कर रा मैं | ‘मैं कुछ नहीं कर रहा।’ |
(51) | क्या भी नको खाओ | ‘कुछ भी मत खाओ।’ |
प्रश्नवाचक शब्द अन्य अर्थ में
देखीये दखिनी के उदाहरण
| (52) | कैसा रैती कैसा चलती । | ‘[कितने / स्टाइल से] रहती है, चलती है।’ |
(53) | क्यों जोडना खाली-पीली । | ‘फिज़ूल में / बेवज़ह क्यों जोड़ें [नहीं]?’ | |
(54) | कायकु तो बी निकले तुम लॉकडाउन में । | ‘तुम लॉक डाउन में क्यों / बेवजह निकले?’ |
पूरक वाक्य की संरचनाएँ
पूरक वाक्य की संरचनाओं के अतिरिक्त अन्य स्थानों में सहायक क्रिया “है” का लोप होता है और “रह”, “रहा”, “रही” यह रूप लेता है रैं, रा, राउँ ।
उच्चारण क्रम में “है” के लोप के कुछ अन्य उदाहरण है
| (55) | मैं चलतू। | ‘मैं चलता हूँ।’ |
(56) | लाड़ाँ कर रैंई। | ‘लाड़ (बहुत) कर रही है।’ | |
(57) | माररा उन। | ‘वह मार रहा है।’ | |
(58) | मेरे को जाना (है)। | ‘मुझे जाना है।’ | |
(59) | तुमकू जाना (है) क्या? | ‘क्या तुम्हें जाना है?’ |
सहायक क्रिया “था” का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं होता। क्रिया रचना के सरलीकरण के कारण वर्णन में इसका भी लोप देखा जा सकता है। किसी बच्चे के द्वारा एक कहानी उदाहरणार्थ प्रस्तुत है।
दखिनी में कहानी के दो रूप और हिंदी अनुवाद
| दखनी – | एक चूहा गलीच फिरता। उसके दुम में काँटा चुभता। हज्जाम मामू को बुलाता। बुलाके मेरा काँटा निकालो बोलता। बस्ता लेके भाग जाता। हिंदी – ‘एक चूहा गली में ही फिरता था। उसके दुम में काँटा चुभ जाता है। नाई को बुलाता है। बुला कर कहता है, “मेरा काँटा निकालो”। बस्ता लेकर (बच्चा) भाग जाता है।’ |
आगरा और ब्रज प्रदेश में “है” की जगह “हैगा” का कथन शैली में प्रयोग देखिए –
एक चूहा गली में ही फिरता हैगा। उस के दुम में काँटा चुभ जाता हैगा। नाई को बुलाता हैगा। बुला कर कहता हैगा मेरा काँटा निकालो। बस्ता लेकर (बच्चा) भाग जाता हैगा।
यहाँ वास्तव में “ है”, “था” के लोप का ही सवाल नहीं, बल्कि पक्ष व्यवस्था में भी सरलीकरण परिलक्षित होता है। वर्णन में प्रायः हर जगह अपूर्ण पक्ष की क्रिया देखते हैं। पूर्ण पक्ष में भी आया, आया है, आया था’ आदि रूपों में काल का अंतर सहायक क्रिया के लोप के कारण खत्म हो जाता है। भविष्य के संदर्भ में भी अपूर्ण पक्ष का प्रयोग है –
| | दखनी | हिंदी |
(60) | कपड़ा लाते ? | कपड़ा लाओगे? |
सरलीकरण के कारण तो यह है ही, अपूर्ण पक्ष के फुटकर खाते की तरह इस्तेमाल के कारण भी है।
हमने ऊपर उल्लेख किया कि पूरक वाक्यों में “है” आ सकता है। उल्लेखनीय है कि कई जगह इसके स्थान पर ‘होता’ का प्रयोग मिलता है।
| (61) | प्रश्न– | ये इसकी अम्मी है न? |
उत्तर– नईं होती। | |||
भूतकाल के लिए देखिए — हती / हता (हिंदी– थी / था) एक राजा हता, एक रानी हती ; ब्रज— एक राम हते एक रावण ना, एक छत्री हते एक बामन ना । |
कई जगह अपूर्ण पक्ष की रचना के स्थान पर (बिना आवश्यकता के) निरंतरबोधक कृदंत का प्रयोग मिलता है। “ यह काम होता है” की जगह काम होते रहता है इस प्रवृत्ति का द्योतक है। ऐसे संदर्भों में कृदंत तिर्यक, अविकारी रूप में आता है और केवल “ रहता है” लिंग वचन के लिए अन्वित होता है।
| (62) | सलमाँ बाताँ करते रैती | ’सलमा बातें करती रहती है।’ |
(63) | वो क्या कि बोलते रैता | ‘न मालूम वह क्या कहता रहता है।’ | |
(64) | याँ एइच होता रैता | ‘यहाँ यही होता रहता है।’ |
दखनी की विशेषता है “ला लेना”। सामान्य रूप से दखनी की रंजक क्रियाएँ मानक हिंदी के समान हैं। लेकिन रंजक क्रिया में पूर्वकालिक कृदंत का व्यापक प्रयोग (पकड़ लेके, कर लेके, खा लेके, ले लेके ) यहाँ की विशेषता है।
“ चला जाना” में ऊपर के उदाहरणों की तरह “ चले जाना” रूप मिलता है (वह चले गया) और इसमें भी पूर्वकालिक कृदंत आता है (चले जाके)। इसी तरह रंजक क्रियाओं में “ रहा” का प्रयोग भी व्यापक है।
मानक हिंदी में जिस तरह “ जो... वह” से विशेषण उपवाक्य की रचना होती है, वैसी रचना का दखनी में अभाव है। यहाँ अस्वतंत्र उपवाक्य वाक्यांश स्तर पर अंतर्निहित संरचना के रूप में आता है, और यहाँ “ सो” योजक शब्द हैं।
| (65) | आप बोले सो बात... | हिंदी– ‘आपने जो बात कही थी वह...’ |
विशेषण उपवाक्य के कर्ता, कर्म दोनों के लिए आता है। आगे के दो वाक्यों में क्रमशः कर्ता और कर्म का विशेषीकरण है। ध्यान दें कि दखनी में ये दोनों वाक्य सतही स्तर पर समान लगते हैं। कर्म-विशेषण वाक्य प्रायः अकर्तृक होता है।
| (66) | कोट पैने सो आदमी | ‘वह आदमी जिसने कोट पहना है…’ |
(67) | तेलुगू– कोट वेसुकुन्न मनिषि | ‘*कोट पहना (हुआ) आदमी’ | |
(68) | यह देखे सोई फ़िल्म है | ‘यह वही फ़िल्म है जो हमने देखी है’ | |
(69) | बोल्तूँ फेल हुए सो | ‘तुम फेल हुए हो यह बात बोल दूँगा’ | |
(70) | ये बिस्तर अम्मा दिए सोई है याद रखो हिंदी– ‘याद रहे कि यह बिस्तर हमारी अम्मा का ही दिया हुआ है।’ ‘याद रखो कि यह वही बिस्तर है जो हमारी अम्मा ने दिया था।’ | ||
(71) | फ्रिज़ हमारे घर से आयसो है याद रखो हिंदी– ‘याद रहे / रखो कि यह फ्रिज़ हमारे घर से ही आया हुआ है।’ इन अकर्तृक वाक्यों में योजक से पहले का कृदंत अविकारी होता है2 (अरोड़ा 2004)। | ||
(72) | फ़ोन पर बोले सो बाताँ याद रखो (* बोली सो बाताँ )। हिंदी– ‘बोली हुई बातें’ | ||
(73) | इसमें रखे सो चिट्ठी (*रखी सो चिट्ठी ), हिंदी– ‘रखी हुई चिट्ठी’ |
शायद इसका कारण है कि “ बोले” (“ ने” के अभाव में तथा कर्ता के उल्लेख के अभाव में) अंतर्निहित क्रिया वाक्यांश है, न कि विशेषण शब्द। तेलुगु में चेप्पिन माट (बोले सो बात ) / चेसिन पनी (करे सो काम) का समान प्रयोग मिलता है।
कुछ रोचक वाक्य देखिए–
| (74) | काला कोट पैने सो है बोलके मालूम होता । हिंदी– ‘लगता है कि...वह है जो काला कोट पहने है।’ | |
(75) | स्टैंड रखे सो ऊपर चढ़े देखो देखो । | हिंदी– ‘जो स्टैंड रखा है उस पर चढ़ा हुआ है।’ | |
(76) | तुम मेडिमेक्स से नहा लेरैं सोई बहुत है । हिंदी– ‘यही बहुत है कि तुम मेडिमेक्स से नहा पा रही हो।’ |
क्रियाविशेषण उपवाक्यों की रचना योजक शब्द “ वैसा”, “ तब”, “उधर” से होती है।
| (77) | गन्ना खींच ले रैं / रँय वैसा कर रई । हिंदी– ‘यह ऐसा कर रही है, जैसे वे गन्ना खींच ले रहे हों।’ | |
(78) | मैं आयी तब कौन भी नईं था । | हिंदी– ‘जब मैं आयी तब कोई भी नहीं था।’ | |
(79) | लोगाँ बैठे हैं उधरीच । | हिंदी– ‘जहाँ लोग बैठे हैं वहीं।’ |
इतिवृत्तात्मक वाक्य (Quotatives)
हिंदी में पुनःकथन “कि” से सूचित होता है, जबकि दखनी में बोलके / करके से या इनके अभाव में भी। हिंदी में पुनःकथन का उपवाक्य स्वतंत्र या मूल उपवाक्य के बाद “कि” से जोड़ा जाता है, जबकि दखनी में वह उपवाक्य के भीतर कर्म के स्थान में आता है। कुछ वाक्य देखिए–
| | दखनी | हिंदी |
(80) | वह आतूँ (बोलके) बोला। | ‘उसने कहा था (कि) मैं आता हूँ।’ | |
(81) | अम्मा मेरे को जाओ बोली | ‘माँ ने मुझसे कहा था कि तुम जाओ।’ | |
(82) | आपको कौन जाओ बोले । | ‘आपसे किसने कहा कि आप जाएँ।’ | |
(83) | क्या भी नको खाओ बोली । | ‘उसने कहा कि कुछ भी मत खाओ।’ | |
(84) | नको जाओ बोले तो नई जातऊँ जी । हिंदी– ‘अगर तुम न जाने को कहो तो नहीं जाऊँगा जी।’ उपरोक्त वाक्यों में लिंग, वचन की अन्विति स्पष्ट है। |
“ बोलके / करके” (अनि) का प्रयोग द्रविड भाषा परिवार की विशेषता का प्रभाव है (सुब्बाराव 2013) 3। “ बोलके” इतिवृत्तात्मक शब्द ही नहीं, प्रयोजन या उद्देश्य सूचित करने के लिए भी आता है। आगे के उदाहरण देखें–
| | दखनी | हिंदी |
(85) | मैं छोड़ दिया बच्चा है बोलके । | ‘मैंने इसलिए / यह सोचकर छोड़ दिया था कि बच्चा है।’ | |
(86) | मैं जरूरी जाना बोलके गया। | ‘मैं इसी कारण गया था कि जाना ज़रूरी है।’ | |
(87) | अच्छा है बोलके लिया था। | ‘यह सोच कर लिया था कि अच्छा है।’ | |
(88) | मैं ख़ाली बोलना बोलके बोला। | हिंदी–‘मैंने यों ही कह दिया था कि कुछ कहना है।’ |
किसी घटना के वर्णन में, ख़ास कर दखनी भाषी बच्चों के द्वारा कहानी सुनाने में एक भिन्न प्रकार की इतिवृत्तात्मक रचना दिखाई पड़ती है जहाँ इतिवृत्तात्मक शब्द “ कते” (< कहते) है।
| (89) | एक राजा था कते। |
(90) | वो लोगाँ शाम में आ रें कते। |
यहाँ “ कहते” का प्रकार्य मानक हिंदी के “ ऐसा है”, “ बात (यों) है”, “ कहा जाता है” (ऐसा है कि एक राजा था।.....) के समान है। स्मरणीय है कि दखनी में “ कहना” का प्रयोग नहीं मिलता। यहाँ यह केवल इतिवृत्तात्मक शब्द है।
| (91) | नींद से नई उठा सकते मुझे दुनिया से उठाते कते । हिंदी– ‘(जो)नींद से नहीं उठा सकते मुझे (वो) कहते हैं मुझे दुनिया से उठा देंगे।’ ‘कि / या नहीं’ की जगह क्रिया की पुनरुक्ति देखी जा सकती है। | |
(92) | तुम सीता को देखे नहीं देखे ? | हिंदी– ‘तुम ने सीता को देखा कि नहीं देखा?’ | |
(93) | उनों आये नईं आये ? | हिंदी– ‘वे आए कि नहीं आए?’ |
“अगर करुँ / करूँगा” की रचना के स्थान पर “ ने” रहित पूर्ण पक्ष की क्रिया का प्रयोग होता है तो “अगर” लुप्त रहता है।
| (94) | तुम खाना नईं खाये तो पीटूँगा। | |
(95) | वो काम नईं करे तो मारूँगा। | ||
(96) | पीली कमीज़ पहने खिल के आते। हिंदी– ‘पीली कमीज़ पहन लो तो निखर कर आते हो।’ बीते काल के संदर्भ में ‘अगर...जाते’ की रचना भिन्न होती है। | ||
(97) | तुम जाते थे तो साब पैसे देते थे। तुम काय कू नईं गये? ‘अगर तुम जाते तो साहब पैसे देते। तुम क्यों नहीं गये?’ कृदंत– दखनी में पूर्वकालिक कृदंत की रचना “के” से होती है, जैसे– बोलके, करके, देखके, लाके, देख लेके, ला लेके, उतर जाके, पूछ लेके । | ||
(98) | चार अंडे उबालके ले लेके आत्यूँ । | हिंदी– ‘चार अंडे उबाल कर लेकर आती हूँ।’ |
हिंदी के “ बिना देखे” आदि के स्थान पर भी पूर्वकालिक कृदंत का प्रयोग होता है।
| (99) | बिगर देखके, बिगर पूछके चला गया । (बिगर?) |
इसी तरह “उन्हें यहाँ आये दस दिन हो गये” आदि वाक्यों के कृदंत के स्थान पर पूर्वकालिक कृदंत का प्रयोग मिलता है।
| (100) | उनको इधर आके दस रोज़ हो गये । | हिंदी– ‘उन्हें इधर आये दस दिन हो गए।’ |
कृदंत में चर्चा की गई है कि “आना” का व्यापार पूर्ण होने की स्थिति में ही “बाद” की सार्थकता है। दखनी के “आये बाद”, “गये बाद” आदि प्रयोग पूर्ण पक्ष के प्रयोग की इस विशेषता की ओर इंगित करते हैं।
प्रश्नवाचक वाक्य
दखनी में बहुधा प्रश्न बिना “क्या” के बनते हैं। बोलचाल की हिंदी में भी प्रश्न इस तरह संभव है।
| (101) | मेरे को लेके जाते? | हिंदी– ‘मुझे ले जाओगे?’ |
(102) | कपड़ा लाते? | हिंदी– ‘कपड़ा लाओगे?’ |
हिंदी के विपरीत दखनी में अगर “क्या” का प्रयोग हो भी तो वह वाक्य के अंत में होता है। तेलुगु में अंत में “आ?” (=”क्या?”) का प्रयोग द्रविड भाषा परिवार की विशेषता है, जहाँ प्रश्नवाचक वाक्य निश्चयार्थक वाक्यों के अंत में कोई रूप जोड़ने से बनते हैं।
तेलुगु वस्तारा < वस्ता + र + आ ‘आओगे ?’; तिंटारा < तिंटा + र + आ ‘खाओगे?’
दखनी में प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में “क्या” का प्रयोग होता है, जैसे —
| | दखनी | हिंदी |
(103) | कपड़े ला लूँ क्या? | ‘क्या कपड़े ले आऊँ?’ | |
(104) | छोकरा चले गया क्या? | ‘क्या छोकरा चला गया?’ | |
(105) | उनों भी आते क्या? | ‘क्या वे भी भी आ रहे हैं?’ | |
(106) | उनों आतुं बोले क्या? | ‘क्या उन्होंने कहा था कि वे आएँगे?’ |
“क्यों” के स्थान पर कायकु का प्रयोग तेलुगू “एंदुकु” की तरह होता है, जैसे —
| | दखनी | हिंदी |
(107) | तुम काय कु नईं गये? | ‘तुम क्यों नहीं गये?’ | |
(108) | कायकू टेंशन लेरा? | ‘टेंशन क्यों ले रहे हो?’ |
व्यंग्यात्मक प्रति प्रश्न
| (109) | कामवाली हूँ नई न? |
(110) | खाना कौन बनातईं ? मैं ?; साफ-सफाई कौन करतईं ? मैं ? ; कामाँ कौन करतईं ? मैं ? |
संबोधन सूचक वाक्य
दखनी भाषा भाषी के संबोधन अम्मी, अब्बू, आपा ‘बड़ी बहन’, मामू ‘मामा’, खाला ‘मौसी’, खालू ‘मौसा’ बहुत ही अपनत्व दर्शानेवाले संबोधन हैं। कहा जा सकता है कि पारिवारिक अपनत्व में -ऊ वाले रूप अधिक प्रचलित हैं।
“मामू” रिश्ते के अलावा “याराना” शब्द भी है—मामू! एक बीड़ी तो पिलाओ ।
आदरार्थक एवं निकटता सूचक
“ जान” आदरार्थक है जो सभी रिश्ते और संबोधन सूचक शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है, जैसे— अम्मीजान, अब्बाजान, खालाजान, आपाजान, मामूजान ।
“मियाँ”, “पाशा”, “जनाब” आदरार्थक संबोधन हैं। “पाशाजानी” का प्रयोग भी होता है।
| (111) | सुनाओ मियाँ! क्या चल राय ? |
(112) | हामिद मियाँ, कमाल पाशा काँ रैगै ! (रैगै = हिंदी ‘रह गए’) |
“ यारों ” एकवचन और बहुवचन दोनों के लिए प्रयुक्त होता है –
| (113) | यारों / याराँ तुम खामोश रहो । |
(114) | याराँ! आज मीटिंग है । (पति पत्नी से) |
स्त्रीवाचक प्रत्यय “अगे” संबोधन का शब्द है और सहेलियों के साथ “गे” निकटता दर्शाता है। छोटी बच्चियों को भी इस तरह संबोधित किया जाता है– सुनगे / नकोगे ।
कहीं-कहीं पति-पत्नी आपस में भी “गे” का प्रयोग करते हैं। उदाहरणतः मरद कहेगा–
| (115) | कित्ता मारी गे! |
(116) | उठ गे! पानी गरम कर द्यूँ । |
“अई ”, “ उई ”, “अब्बो ”, “ हाय”, “ हाय अल्ला” औरतों में विस्मय प्रकट करने के लिए खूब प्रचलित हैं । “अब्बो ”, “अब्बब्बो ” का बोलचाल की दखनी में धड़ल्ले से प्रयोग होता है। “ उई मा!”, “ हाय अल्ला!” में लडकियों के शर्माने का भाव भी है।
“अम्मा ” दक्षिण की भाषाओं में अपनी माँ ही नहीं किसी भी महिला या मालकिन के लिए आदरसूचक घनिष्ठता दर्शानेवाला संबोधन है। यहाँ तक कि महिला नामों के साथ “अम्मा” लगाने की प्रथा है— “ नरसम्मा ”, “ बालम्मा ” आदि।
“ बाबू” भी नाम में या स्वतन्त्र रूप से संबोधन में पाया जाता है, जैसे— चंद्रबाबू नायडु,आंध्र प्रदेश के भूतपूर्व मुख्य मंत्री। यह उदाहरण भी देखिए— रिक्शेवाला – बाबू! कहाँ जाना है ?
उसी तरह पुरुषों के लिए आदरार्थक “अय्या” का प्रयोग होता है जो तेलुगु में संस्कृत “आर्य” से आगत है— नरसय्या, बालय्या आदि।
विस्मय सूचक “अय्यो!”, “अम्मो!”। तेलुगु शब्द भी दखनी में बखूबी प्रचलित हैं।
वीडियो संदर्भ – यूट्यूब
- हैदराबाद डायरीज़
- हैदराबाद कॉमेडीज़
- वरंगल डायरीज़
- घाबरामरद हिंदी (दखिनी) कॉमेडी
The Impact of Other Indian Languages on Dakhini / दखनी पर अन्य भारतीय भाषाओं का प्रभाव
१ परिचय
२ दखनी हिंदी के प्रकार
वीडियो संदर्भ – यूट्यूब